धर्म की आड़ – अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1. रमुआ पासी और बुधू मियाँ किनके प्रतीक हैं?
उत्तर- रमुआ पासी और बुद्धू मियाँ उन लोगों-करोड़ों अनपढ़ साधारण-से आदमियों के प्रतीक हैं जो धर्म के नाम पर आसानी से बहलाए-फुसलाए जा सकते हैं।

प्रश्न 2. रमुआ और बुधू मियाँ जैसे लोगों का दोष क्या है?
उत्तर- रमुआ और बुद्धू मियाँ जैसे लोगों का दोष यह है कि वे अपने दिमाग से कोई बात सोचे बिना दूसरों के बहकावे में आ जाते हैं और धर्म को जाने बिना धर्मांधता में अपनी जान देने को तैयार रहते हैं।

प्रश्न 3. साम्यवाद का जन्म क्यों हुआ?
उत्तर- पश्चिमी देशों में गरीबों को पैसे का लालच दिखाकर उनसे काम लिया जाता है। उनकी कमाई का असली फायदा धनी लोग उठाते हैं और गरीबों का शोषण करते हैं। इसी शोषण के विरोध में साम्यवाद का जन्म हुआ।

प्रश्न 4. गांधी जी के अनुसार धर्म का स्वरूप क्या था?
उत्तर- गांधी जी के अनुसार धर्म में ऊँचे और उदार तत्व होने चाहिए। उनमें त्याग, दूसरों की भलाई, सहिष्णुता, सद्भाव जैसे तत्व होने चाहिए। दूसरे को दुख देने वाले भाव, असत्यता, धर्मांधता तथा बाह्य आडंबर धर्म के तत्व नहीं होने चाहिए।

प्रश्न 5. चालाक लोग सामान्य आदमियों से किस तरह फायदा उठा लेते हैं? पठित पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर- चालाक लोग सामान्य लोगों की धार्मिक भावनाओं का शोषण करना अच्छी तरह जानते हैं। ये सामान्य लोग धर्म के बारे में कुछ नहीं जानते हैं। वे लकीर को पीटते रहना ही धर्म समझते हैं। ये चालाक लोग धर्म का भय दिखाकर उनसे अपनी बातें मनवा ही लेते हैं और उनसे फायदा उठा लेते हैं।

प्रश्न 6. लेखक किसके द्वारा किए गए शोषण को बुरा मानता है-धनायों द्वारा या अपने देश के स्वार्थी तत्वों द्वारा किए जा रहे शोषण को? पाठ के आलोक में लिखिए।
उत्तर- लेखक जानता है कि पाश्चात्य देशों में अमीरों द्वारा अपने धन का लोभ दिखाकर गरीबों का शोषण किया जाता है, परंतु हमारे देश में स्वार्थी तत्व गरीबों का शोषण धर्म की आड़ में लोगों की बुधि पर परदा डालकर करते हैं। लेखक इस शोषण को ज्यादा बुरा मानता है।

प्रश्न 7. हमारे देश में धर्म के ठेकेदार कहलाने का दम भरने वाले लोग मूर्ख लोगों का शोषण किस तरह करते हैं?
उत्तर- हमारे देश में धर्म के ठेकेदार कहलाने का दम भरने वाले लोग मूर्ख लोगों के मस्तिष्क में धर्म का उन्माद भरते हैं और फिर उसकी बुधि में ईश्वर और आत्मा का स्थान अपने लिए सुरक्षित करके धर्म, आत्मा, ईश्वर, ईमान आदि के नाम पर एक-दूसरे से लड़ाते हैं।

प्रश्न 8. लेखक की दृष्टि में धर्म और ईमान को किसका सौदा कहा गया है और क्यों ?
उत्तर- लेखक ने दृष्टि में धर्म और ईमान को मन का सौदा कहा गया है क्योंकि यह व्यक्ति का अधिकार है कि उसका मन किस धर्म को मानना चाहता है। इसके लिए व्यक्ति को पूरी आज़ादी होनी चाहिए। व्यक्ति को कोई धर्म अपनाने या त्यागने के लिए विवश नहीं किया जाना चाहिए।

प्रश्न 9. लेखक ने लोगों के किन कार्यों को वाह्याडंबर कहा है और क्यों?
उत्तर- लेखक ने लोगों द्वारा अजाँ देने, नमाज पढ़ने, पूजा-पाठ करने, नाक दबाने आदि को वाह्याडंबर कहा है क्योंकि ऐसा करके व्यक्ति ने अपनी आत्मा को शुद्ध कर पाता है और न अपना भला। इन कार्यों का उपयोग वह अपनी धार्मिकता को दिखाने के लिए करता है जिससे भोले-भाले लोगों पर अपना वर्चस्व बनाए रख सके।

प्रश्न 10. धर्म के बारे में लेखक के विचारों को स्पष्ट करते हुए बताइए कि ये विचार कितने उपयुक्त हैं?

उत्तर- धर्म के बारे में लेखक के विचार धर्म के ठेकेदारों की आँखें खोल देने वाले और उन्हें धर्म का सही अर्थ समझाने वाले हैं। लेखक के इन विचारों में धर्मांधता, दिखावा और आडंबर की जगह जनकल्याण की भावना समाई है। इस रूप में धर्म के अपनाने से दंगे-फसाद और झगड़े स्वतः ही समाप्त हो सकते हैं। लेखक के ये विचार आज के परिप्रेक्ष्य में पूर्णतया उपयुक्त और प्रासंगिक हैं।

प्रश्न 11. उत्पात और जिद किसके नाम पर किए जाते हैं?
उत्तर- उत्पात और जिद धर्म और ईमान के नाम पर किए जाते हैं।

प्रश्न 12. धर्म के नाम पर जिद् करने से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर- अपने धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानना और दूसरे धर्मों का निरादर करना जिद है। इसे धार्मिक कड्टरता भी कह सकते हैं।

प्रश्न 13. धर्म और ईमान के नाम पर दंगे-फसाद क्यों होते हैं?

उत्तर- धर्म के ठेकेदारों द्वारा भड़काए जाने पर लोग दूसरे धर्म के लोगों के खिलाफ दंगे-फसाद करते हैं।

प्रश्न 14. इस समय देश में धर्म की धूम है – इस कथन द्वारा लेखक क्या कहना चाहता है ?

उत्तर- यहाँ लेखक एक तीखा व्यंग्य कर रहा है। देश में हर जगह भिन्न धमों के पूजा-स्थल और अनुयायी मिल जाते हैं। जो धर्म के वास्तविक अर्थ को जाने बिना बढ़-चढ़ कर धर्म का दिखावा करते हैं।

प्रश्न 15. साधारण आदमी का दोष क्या है ?
उत्तर- बिना सोचे-समझे दूसरे लोगों के बहकावे में आ जाना।

प्रश्न 16. कुछ चलते-पुरजे पढ़े-लिखे लोग मूखों की शक्तियों और उत्साह का दुरुपयोग क्यों कर रहे हैं?

उत्तर- उनके बल पर अपना नेतृत्व और बड़प्पन बनाए रखने के लिए।

प्रश्न 17. साधारण आदमी किसकी रक्षा के लिए प्राण तक दे सकता है ?
उत्तर- धर्म और ईमान की रक्षा के लिए।

प्रश्न 18. किसके कारण साम्यवाद, वोल्शेविज़्म का जन्म हुआ ?

उत्तर- धनपतियों द्वारा गरीबों के शोषण के कारण।

प्रश्न 19. कौन धर्म के तत्त्वों को नहीं जानता ?
उत्तर- साधारण आदमी धर्म के तत्त्वों को नहीं जानता।

प्रश्न 20. धर्म के नाम पर कुछ लोग अपने हीन स्वाथं की सिब्दि के लिए क्या करते हैं?

उत्तर- धर्म के नाम पर कुछ लोग अपने हीन स्वार्थों की सिद्धि के लिए लोगों को आपस में लड़वा देते हैं। इस प्रकार वे करोड़ों आदमियों की शक्ति का दुरुपयोग किया करते हैं।

प्रश्न 21. बुद्धि पर पर्दा डालने से क्या तात्पर्य है ?

उत्तर- बुद्धि पर पर्दा डालने से तात्पर्य यह है कि धर्म के नाम पर लोगों को भ्रमित कर दिया जाए जिससे वे आपस में लड़ते रहें।

प्रश्न 22. धर्म-ईमान के नाम पर शोषण कौन करते हैं?

उत्तर- धर्म-ईमान के नाम पर धर्म के ठेकेदार, नेता और स्वार्थी तत्त्व लोगों का शोषण करते हैं।

प्रश्न 23. हमारे देश में किसका जोर नहीं है ?
उत्तर- हमारे देश में धनपतियों का जोर नहीं है।

प्रश्न 25. धर्म के स्पष्ट चिह्न क्या हैं?

उत्तर- शुद्धाचरण और सदाचार ही धर्म के स्पष्ट चिह्न हैं।

प्रश्न 26. किस धर्म को आगे आने वाला समय नहीं टिकने देगा ?

उत्तर- आने वाला समय उस धर्म को नहीं टिकने देगा जहाँ ईश्वर को रिश्वत देने की प्रथा होगी। थोड़ी देर प्रार्थना करने के बाद जहाँ दिनभर बेईमानी करके दूसरों को तकलीफ दी जाएगी।

प्रश्न 27. ‘आचरण और कल्याण’ के क्या अर्थ हैं?

उत्तर- आचरण का अर्थ है- व्यवहार और कल्याण का अर्थ है- भलाई।

प्रश्न 28. लोग धर्म के प्रश्न पर संवेदनशील क्यों हैं?

उत्तर- धर्म मनुष्य की चेतना से जुड़ा विषय है। धर्म के अर्थ मानवीय हैं परंतु धर्म के ठेकेदार अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु लोगों की धार्मिक-भावनाओं का इस्तेमाल करते हैं इससे यह समस्या उत्पन्न हो जाती है कि लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे तक हो जाते हैं।

प्रश्न 29. लेखक ने सामान्य जनता को मूर्ख क्यों कहा है ?

उत्तर- भारतीय लोग दुर्भाग्यवश अधिक पढ़े-लिखे नहीं हैं परंतु वे धर्म भीरु हैं। भारतीय जनता दूसरों के बहकावे में आकर अपना ही नुकसान कर बैठती है इसलिए लेखक ने उसे मूर्ख कहा है।

प्रश्न 30. वास्तविक आराधना पद्धति क्या है ?

उत्तर- इंसान को सर्वोच्च मानना सभी धर्मों का सम्मान करना, आचरण और व्यवहार को शुद्ध रखना और सत्य के मार्ग पर चलना वास्तव में ईश्वर की आराधना करना है।

प्रश्न 31. सच्चा मनुष्य कौन है ?

उत्तर- लेखक के अनुसार व्यक्ति को ईश्वरत्व से मनुष्यत्व की ओर जाना चाहिए अर्थात् स्वयं को ईश्वर न मान कर एक अच्छा व सदाचारी मनुष्य बनना चाहिए। सच्चा मनुष्य वही होगा जो मनुष्यता का सम्मान करेगा।

प्रश्न 32. लेखक चलते-पुरज़े लोगों को यथार्थ दोष क्यों मानता है?

उत्तर- कुछ चालाक पढ़े-लिखे और चलते पुरज़े लोग, अनपढ़-गॅवार साधारण लोगों के मन में कट्टर बातें भरकर उन्हें धर्माध बनाते हैं। ये लोग धर्म विरुद्ध कोई बात सुनते ही भड़क उठते हैं, और मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं। ये लोग धर्म के विषय में कुछ नहीं जानते यहाँ तक कि धर्म क्या है, यह भी नहीं जानते हैं। सदियों से चली आ रही घिसी-पिटी बातों को धर्म मानकर धार्मिक होने का दम भरते हैं और धर्मक्षीण रक्षा के लिए जान देने को तैयार रहते हैं। चालाक लोग उनके साहस और शक्ति का उपयोग अपना स्वार्थ पूरा करने के लिए करते हैं। उनके इस दुराचार के लिए लेखक चलते-पुरजे लोगों का यथार्थ दोष मानता है।

प्रश्न 33. देश में धर्म की धूम है’-का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- देश में धर्म की धूम है’-को आशय यह है कि देश में धर्म का प्रचार-प्रसार अत्यंत जोर-शोर से किया जा रहा है। इसके लिए गोष्ठियाँ, चर्चाएँ, सम्मेलन, भाषण आदि हो रहे हैं। लोगों को अपने धर्म से जोड़ने के लिए धर्माचार्य विशेषताएँ गिना रहे हैं। वे लोगों में धर्मांधता और कट्टरता भर रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि साधारण व्यक्ति आज भी धर्म के सच्चे स्वरूप को नहीं जान-समझ सका है। लोग अपने धर्म को दूसरे से श्रेष्ठ समझने की भूल मन में बसाए हैं। ये लोग अपने धर्म के विरुद्ध कोई बात सुनते ही बिना सोच-विचार किए मरने-कटने को तैयार हो जाते हैं। ये लोग दूसरे धर्म की अच्छाइयों को भी सुनने को तैयार नहीं होते हैं और स्वयं को सबसे बड़ा धार्मिक समझते हैं।

प्रश्न 34. कुछ लोग ईश्वर को रिश्वत क्यों देते हैं? ऐसे लोगों को लेखक क्या सुझाव देता है?

उत्तर- कुछ लोग घंटे-दो घंटे पूजा करके, शंख और घंटे बजाकर, रोजे रखकर, नमाज पढ़कर ईश्वर को रिश्वत देने का प्रयास इसलिए करते हैं, ताकि लोगों की दृष्टि में धार्मिक होने का भ्रम फैला सकें। ऐसा करने के बाद वे अपने आपको दिन भर बेईमानी करने और दूसरों को तकलीफ पहुँचाने के लिए आज़ाद समझने लगते हैं। ऐसे लोगों को लेखक यह सुझाव देता है। कि वे अपना आचरण सुधारें और ऐसा आचरण करें जिसमें सभी के कल्याण की भावना हो। यदि ये लोग अपने आचरण में सुधार नहीं लाते तो उनका पूजा-नमाज़, रोज़ा आदि दूसरों की आज़ादी रौंदने का रक्षा कवच न बन सकेगा।

प्रश्न 35. ‘धर्म की आड़’ पाठ में निहित संदेश का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- ‘धर्म की आड़’ पाठ में निहित संदेश यह है कि सबसे पहले हमें धर्म क्या है, यह समझना चाहिए। पूजा-पाठ, नमाज़ के बाद दुराचार करना किसी भी रूप में धर्म नहीं है। अपने स्वार्थ के लिए लोगों को गुमराह कर शोषण करना और धर्म के नाम पर दंगे फसाद करवाना धर्म नहीं है। सदाचार और शुद्ध आचरण ही धर्म है, यह समझना चाहिए। लोगों को धर्म के ठेकेदारों के बहकावे में आए बिना अपनी बुधि से काम लेना चाहिए तथा उचित-अनुचित पर विचार करके धर्म के मामले में कदम उठाना चाहिए। इसके अलावा धर्मांध बनने की जगह धर्म, सहिष्णु बनने की सीख लेनी चाहिए। युवाओं को यह सीख भी लेनी चाहिए कि वे धर्म के मामले में किसी भी स्वतंत्रता का हनन न करें तथा वे भी चाहे जो धर्म अपनाएँ, पर उसके कार्यों में मानव कल्याण की भावना अवश्य होनी चाहिए।

Leave a Reply

Scroll to Top
Scroll to Top